नित्यकर्म वह दैनिन्दिन कर्म हैं जिनके न करने से प्रत्यवाय होता है, अर्थात् व्यक्ति पाप का भागी होता है। जैसे नित्य संध्यावन्दन आदि । यथासम्भव त्रिकाल सन्ध्या करनी चाहिए, ऐसा स्मृति ग्रन्थों में बताया…
नित्यकर्मवह दैनिन्दिन कर्म हैं जिनके न करने से प्रत्यवाय होता है, अर्थात् व्यक्ति पाप का भागी होता है। जैसे नित्य संध्यावन्दन आदि । यथासम्भव त्रिकाल सन्ध्या करनी चाहिए, ऐसा स्मृति ग्रन्थों में बताया गया है ।